राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद संभालने के बाद पहली बार एक आधिकारिक संबोधन में भारतीय वन सेवा के अधिकारियों के एक समूह को भारत की विकास जरूरतों को पूरा करने के लिए समस्या बताने के बजाय समाधान देने की सलाह दी है। उन्होंने अफसरों से वनों में रह रहे आदिवासियों, लाखों गरीबों की मूलभूत भोजन और ईंधन जरूरतों के प्रति संवेदनशील रहने को कहा, आदिवासी साधारण और मेहनती लोग हैं, उन्हें आपके मार्गदर्शन की जरूरत है। उनके साथ आप साथियों जैसा व्यवहार करें, घुसपैठिए जैसा नहीं। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण की जरूरतों और विकास की आवश्यकताओं के बीच संतुलन स्थापित करना होगा। उनका कार्य समस्याओं को सामने लाना नहीं बल्कि उनका समाधान प्रस्तुत करना है।
उन्होंने कहा कि हमारी राष्ट्रीय वन नीति कहती है कि 33 प्रतिशत आम जमीन पर वन क्षेत्र होना चाहिए। आपको प्राकृतिक वनों को समृद्ध बनाने तथा वृक्ष कवर के तहत गैर वन क्षेत्र लाने में मदद के तरीके खोजने होंगे ताकि पर्यावरण संतुलन बनाने में सहायता मिले। आपको बता दे की चुनाव में जीत के बाद अपने पहले संबोधन में देश के 14वें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा था मैं मिट्टी के घर में पला बढ़ा हूं। आज बारिश हो रही है, इस वक्त न जाने कितने कोविंद भीग रहे होंगे। मैं उन सभी पसीना बहाने वालों गरीबों और मजदूर भाइयों का प्रतिनिधि बनकर राष्ट्रपति बनकर जा रहा हूं।