नई दिल्ली: कृषि सुधार कानूनों को वापस लेने और फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी दर्जा देने की मांग को लेकर किसान संगठनों और सरकार के बीच शुक्रवार को हुई नौंवे दौर की बातचीत में भी कोई निर्णय नहीं हो सका। लगभग पांच घंटे तक चली बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि आज की वार्ता निर्णायक मोड़ पर नहीं पहुंची। सरकार खुले मन से किसानों की समस्याओं पर बातचीत करना चाहती है और उन्हें उम्मीद है कि किसान संगठन बातचीत को आगे बढ़ाएंगे। उन्होंने कहा कि बैठक साैहार्दपूर्ण माहौल में हुई और उन्हें उम्मीद है कि किसान आंदोलन समाप्त करेंगे।
इस समय पड़ रही कड़ाके की ठंड को लेकर सरकार अधिक चिंतित है। तोमर ने किसानों की समस्याओं को लेकर गठित समिति के आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि समिति यदि सरकार को बुलाएगी तो वह अपना पक्ष वहां रखेगी। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय सर्वाेच्च न्यायिक संस्था है और उसके प्रति हमारी प्रतिबद्धता है। किसानों और सरकार के बीच अगली बैठक 19 जनवरी को होगी। उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि किसानों की समस्याओं को लेकर दो-तीन राज्यों के किसान आंदोलन कर रहे हैं।
वह इन आंदोलनकारियों को किसानों का प्रतिनिधि मानते हैं और इसी को ध्यान में रख कर वार्ता की जा रही है। उन्होंने एक अन्य प्रश्न के उत्तर में कहा कि कांग्रेस ने वर्ष 2019 के चुनावी घोषणापत्र में कृषि सुधार की बात कही थी और उसे अपने रुख पर कायम रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि न्यायालय के आदेश का सभी को सम्मान करना चाहिए। किसान नेताओं ने बताया कि सरकार तीन कृषि सुधार कानूनों को वापस लेने के लिए तैयार नहीं है।
किसान नेता हन्नान मोल्ला ने सरकार और किसान संगठनों के बीच आज हुई बातचीत को समय नष्ट करने वाला बताया और कहा कि बैठक में कोई ठाेस निर्णय नहीं हो सका। सरकार अपनी जिद पर अड़ी हुई है और वह कृषि सुधार कानूनों में संशोधन पर जोर दे रही है, जबकि किसान इन कानूनों को वापस लेने की अपनी मंशा बार-बार जता चुके हैं। मोल्ला ने कहा कि सरकार के साथ हो रही बातचीत से किसान संगठनों को कोई उम्मीद नहीं है। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय की ओर से समस्याओं के समधान को लेकर गठित समिति के संबंध में बैठक के दौरान कोई बातचीत नहीं हुई। किसान नेता दर्शनपाल ने भी बैठक को निरर्थक बताया और कहा कि यह भी बेनतीजा रही। एक अन्य किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि किसान उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित समिति के समक्ष नहीं जाएंगे और सरकार के साथ बातचीत करेंगे।
उन्होंने कहा कि किसान तीन कृषि सुधार कानूनों को वापस लेने और फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी दर्जा दिए जाने की अपनी मांग पर अडिग हैं। किसान संगठन पिछले 51 दिनों से राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने अपने आंदोलन को और तेज करने की घोषणा की है।