
लेकिन आज ये सभी पार्टियां समाप्त हो चुकी हैं। चौथे लोकसभा चुनाव में स्वत्रंत पार्टी को 44 सीटें मिली थीं, आज इस पार्टी का नाम लेने वाला कोई नहीं है। छठे लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी को 295 सीटें मिली थीं। उसकी सरकार भी बनी थी, पर कुछ ही वर्ष बाद वह समाप्त हो गई। नौवीं लोकसभा चुनाव में जनता दल को 142 सीटें मिली थीं। उसकी सरकार भी बनी थी, लेकिन आज यह पार्टी भी समाप्त हो गई है। 1984 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को दो सीटें मिली थीं, लेकिन जनता से जुड़ाव का ही नतीजा है कि 2019 के चुनाव में भाजपा को 303 सीटें मिलीं।
कम्युनिस्ट पार्टी भी भारतीय समाज के साथ जुड़कर नहीं चल सकी। इसका हाल भी जनता देख रही है। कांग्रेस को सोचना चाहिए कि क्यों एक- एक करके जनाधार वाले नेता पार्टी छोड़ रहे हैं। साफ है अगर कांग्रेस समाज से जुड़कर नहीं रहेगी, समाज में हो रहे बदलावों को नहीं स्वीकार करेगी तो इसका अंजाम भी दूसरी पार्टीयो जैसा हो सकता है। राष्ट्रीय स्तर पर मुख्य रूप से दो ही पार्टियां हैं, एक भारतीय जनता पार्टी और दूसरी कांग्रेस। कुछ क्षेत्रीय पार्टियां भाजपा के साथ जुड़ी हुई हैं और कुछ कांग्रेस के साथ। यदि कांग्रेस सत्ता में हो तो भाजपा को मजबूत विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिए और यदि भाजपा सत्ता में हो तो कांग्रेस को सशक्त विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिए, लेकिन आज कांग्रेस एक मजबूत विपक्ष की भूमिका नहीं निभा पा रही है। यह चिंता की बात है जिसपर सोच विचार करने की जरूरत है।