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पहले तारा सिंह हेयर, अब रिपुदमन की हत्या…कनिष्क बम त्रासदी मामले में कभी होगा इंसाफ..?

कनिष्क बम त्रासदी मामले में आरोपी रहे रिपुदमन सिंह मलिक की पिछले दिनों कनाडा के नगर सरी में हत्या कर दी गई। इस हत्या ने एक बार फिर से कई पुराने ज़ख्म कुरेद डाले हैं। एक बार फिर से यह एहसास गहरा गया है कि कनिष्क के मुजरिमों को आज तक भी सजा नही मिल सकी। यही नहीं इस मामले में तारा सिंह हेयर जैसे अहम गवाहों को भी कत्ल कर दिया गया। उनके कातिल भी अब तक आजाद हैं। विश्वास करना मुश्किल होता है कि ऐसा उस देश में हुआ है बेहद विकसित और साधन संपन्न देश हैं। जहां मानव अधिकारों और कानून व्यवस्था की सबसे अधिक दुहाई दी जाती है। कनिष्क मामले में कनाडा की न्याय व्यवस्था पूरी तरह से विफल साबित हुई है। ऐसा वहां की सुरक्षा और जांच एजेंसियों की नाकाबलियत की वजह से हुआ है या फिर जान बूझ कर पूरे मामले में लीपा पोती की गई है। यह अपने आप में विचार का विषय है।

कानून का सहयोग करने की मिली सज़ा !

किस प्रकार एयर इंडिया के विमान कनिष्क को लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे पर उतरने से पहले बम धमाके से उड़ा दिया गया। इस विषय पर काफी विस्तार से लिखा जा चुका है। आज हम इस त्रासदी से जुड़े उस बहादुर इंसान के विषय में बात करेंगे, जिसने इस वहशियाना कार्रवाई को अंजाम देने वालों को सजा दिलवाने की भरपूर कोशिश की और यहां तक कि इस के लिए अपनी जान भी गवा दी। साथ ही बात करेंगे कनाडा की जांच एजेंसियों की भूमिका की। किस प्रकार कनाडा की रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (आरसीएमपी) ने एक के बाद एक ऐसी गलतियां की, या यूं कहिए कि एकदम साफ सामने नजर आ रहे सबूतों को अनदेखा किया उसकी मिसाल आसानी से नहीं मिलती। रिपुदमन सिंह मलिक कनिष्क मामले में आरोपी था। लेकिन पिछले कुछ समय से उसकी नजदीकियां भारत की मौजूदा सरकार के साथ बढ़ने लगी थी। शायद इसी कारण उसकी हत्या की गई। लेकिन 1995 के जनवरी के महीने में लंदन में तरसेम सिंह पूरेवाल का कत्ल हुआ और उसके बाद 1998 के नवंबर के महीने में तारा सिंह हेयर को भी मार डाला गया। इन दोनो की हत्या सिर्फ इस लिए हुई क्योंकि यह दोनो कनिष्क के साजिशकर्ताओं के बारे में बहुत कुछ जानते थे और उन्हें सजा दिलवाने के लिए कानून का सहयोग भी कर रहे थे।

हेयर को सुरक्षा देने में क्यों नाकामयाब रही पुलिस ?

तारा सिंह हेयर का इस प्रकार मर्डर हो जाना कनाडा की पुलिस व्यवस्था के मुंह पर एक करारा तमाचा था। हेयर उग्रवादियों के निशाने पर था उसे निरंतर धमकियां मिल रही थीं। पर इस सब के बावजूद उसकी जान की रक्षा नहीं की जा सकी। अपनी किताब, लॉस आफ फेथ, में वैंकूवर सन की रिपोर्टर किम बोलन लिखती हैं, ” तारा सिंह हेयर का मर्डर रोका जा सकता था। लेकिन ऐसा इसलिए नहीं हो सका, क्योंकि उसकी हत्या करने वाले सिख इंतेहा पसंद अनासिर कनाडा के कुछ रसूखदार नेताओं के करीब थे”। एक और अखबार नेशनल पोस्ट के संवाददाता जोनाथन के ने भी अपने एक लेख में लिखा था कि हेयर के कत्ल के एक महीने बाद ही इस समय के कनाडाई प्रधानमंत्री जॉन चेरेटियन ने एक डिनर में शिरकत की थी। इस डिनर में रिपुदमन सिंह मलिक और कई अन्य खालिस्तान समर्थक शामिल थे जिनका नाम कनिष्क मामले में भी शामिल था। कनिष्क विमान हादसे की जांच के लिए बने आयोग के प्रमुख जस्टिस जॉन मेजर ने भी आरसीएमपी की भूमिका की कड़ी आलोचना की। अपनी रिपोर्ट में उन्होंने कहा कि सुरक्षा एजेंसियां तारा सिंह हेयर को सुरक्षा मुहैया करवाने में असफल रही। आरसीएमपी की लापरवाही का सिलसिला यहीं पर नहीं रुका। तारा सिंह हेयर के घर पर लगे सीसीटीवी कैमरे भी उस रात काम नहीं कर रहे थे जिस रात उसकी हत्या की गई। दरअसल यह कैमरे पिछले कई सप्ताह से काम नहीं कर रहे थे। इन्हे ठीक करने का कोई प्रयास नहीं हुआ और ना ही यह जानकारी हेयर के परिवार के साथ शेयर की गई। इसके बाद इस हत्या की जांच के दौरान भी भयंकर लापरवाही बरती गई। अव्वल तो कुछ अहम लीड्स पर काम ही नहीं किया गया और जहां किया भी गया तो इस नालायकी से कि अदालत ने उन्हें खारिज कर दिया। हत्यारों तक पहुंचने के लिए एक प्रोजेक्ट एक्सपेडियो भी लॉन्च किया गया। लेकिन इसका भी कोई लाभ नहीं हुआ। तारा सिंह हेयर के कातिलों को आज भी कोई सजा नहीं मिली। हमलावर हरकीरत सिंह बग्गा पुलिस की पकड़ में भी आ गया। लेकिन एक बार फिर कनाडा अथॉरिटीज की कोताही और ना अहली नुमाया तौर पर सामने आई। बग्गा कनिष्क मामले में भी शक के दायरे में आ चुका था। हेयर पर हमला करने के लिए जिस हथियार का इस्तेमाल बग्गा ने किया था। वही .357 गन कनिष्क मामले के एक मात्र सजायाफ्ता मुजरिम इंदर जीत सिंह रैयत के घर से भी बरामद हुई थी। यह दोनो हथियार यूएस के एक ही व्यक्ति द्वारा मुहैया करवाए गए थे। लेकिन आरसीएमपी ने इस लीड के आधार पर जांच को आगे बढ़ाने का कोई प्रयास नहीं किया। बग्गा को ना तो कोई सजा मिली और ना ही कनिष्क त्रासदी का मामला सुलझ पाया।

कौन था तारा सिंह हेयर?

तारा सिंह हेयर की कहानी दरअसल कनाडा सरकार की खालिस्तान के नाम पर हिंसा करने वालों के प्रति ढुलमुल नीति की कहानी है। किस प्रकार कनाडा इस हिंसक ताकतों के प्रति उदासीन है और कैसे दुनिया के अमीर तरीन और साधन संपन्न देशों के से एक यह देश खालिस्तान के नाम पर भारत की एकता और अखंडता को चुनौती देने वाले अनासिर के लिए सेफ हेवन बना हुआ है।

कनाडा के सब से पुराने और सब से ज्यादा बिकने वाले अखबार इंडो कनाडियन टाइम्स के संस्थापक और संपादक रहे तारा सिंह हेयर कनाडा के शायद एक मात्र पत्रकार हैं जिन्हे अपनी पत्रकारिता और अपने विचारों की अभिव्यक्ति के कारण जान दे हाथ धोना पड़ा। किसी समय खालिस्तान की मांग का समर्थक रहा तारा सिंह हेयर उग्रवादियों के हिंसक तौर तरीकों से सहमत नहीं था। इस के विरोध में वह अपने अखबार में अक्सर लेख भी लिखा करता था। अपनी इस अलग सोच के कारण वह उग्र पंथियों की आंख की किरकरी भी बन चुका था। कनिष्क हादसे के बाद तो उसका इन उग्र पंथियों से बिल्कुल ही मोह भंग हो गया। इस हादसे ने हेयर के मन पर गहरा असर किया और उसने ठान ली कि इतनी बड़ी वहशियाना कार्रवाई करने वालों को वह बेनकाब कर के रहे गा। इस मामले में एक बड़ा खुलासा हेयर ने तब किया जब 1988 में अपने एक लेख में उसने लिखा कि कनिष्क हादसे के लिए अजायब सिंह बागड़ी जिम्मेवार है। इस लेख में हेयर ने खुलासा किया कि बागड़ी ने लंदन से छपने वाले अखबार देस परदेस के संपादक तरसेम सिंह पूरेवाल को बताया था कि किस प्रकार एयर इंडिया की फ्लाइट नंबर 182 में टाइम बम रखा गया। तारा सिंह हेयर के मुताबिक उसने स्वयं इस बातचीत को सुना था। एक अन्य लेख में उसने साजिश रचने वाले तलविंदर सिंह परमार के विषय में भी लिखा। उसने साफ तौर पर लिखा कि किस प्रकार बागड़ी और परमार ने इस पूरी साज़िश को अंजाम दिया।

इसके बाद अक्तूबर 1995 में हेयर ने अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाने के मकसद से एक और प्रयास किया। उसने हलफनामा दायर कर के आरसीएमपी को उस बातचीत की जानकारी दी जो तरसेम सिंह पूरेवाल और अजायब सिंह बागड़ी के दरमियान हुई थी। लेकिन आरसीएमपी ने इसे भी सबूत के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया। हेयर ने इसी बयान को लेकर एक वीडियो भी बनाया। इसमें उसने साज़िश का विस्तार से खुलासा किया लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला। अपनी साफगोई और न्याय के प्रति निष्ठा तारा सिंह हेयर को बेहद महंगी पड़ी। अपनी जान दे कर उसे यह कीमत चुकानी पड़ी। 18 नवंबर 1998 को तारा सिंह हेयर को उनके निवास के बाहर उस समय गोली मार दी गई जब उन्हें उनकी गाड़ी से व्हील चेयर पर ट्रांसफर किया जा रहा था।

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